देहरादून, 07-जून-2017 | आर्ष गुरुकुल पौंधा देहरादून का तीन दिवसीय 18वां वार्षिकोत्सव 4 जून, 2017 को सोल्लास सम्पन्न हुआ ।यज्ञ के बाद गुरुकुल सम्मेलन आरम्भ हुआ जिसमें डा. रघुवीर वेदांलंकार, आचार्य वेदप्रकाश श्रोत्रिय, डा. ज्वलन्त कुमार शास्त्री, आचार्य धर्मपाल शास्त्री, डा. सोमदेव शास्त्री, डा. विनय विद्यालंकार, डा. अन्नपूर्णा सहित ठाकुर विक्रम सिंह, श्री दयाशंकर विद्यालंकार आदि के उद्बोधन व व्याख्यान हुए। मैं गुरुकुल के प्रांगण में आकर स्वयं को गौरवान्वित अनुभव कर रहा हूं। मुझे स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती जी के सान्निध्य में अपने शैशव वा बाल्यकाल को संवारने का अवसर मिला। आज हम जहां खड़े हैं वह गुरुकुल की देन है। हममें जो गुण हैं वह गुरुकुल की देन और जो अवगुण हैं वह हमारे हैं। यदि स्वामी दयानन्द न हुए होते तो आज यहां जो आर्यों का जनसमूह दिखाई दे रहा है, वह दिखाई न देता।। यदि हम अपना योगदान ईमानदारी से दें तो हम ऋषि ऋण से उऋण होने की ओर एक कदम आगे बढ़ सकेंगेे। पतंजलि योगपीठ संस्था का आरम्भ भी दान से हुआ। हमने अपनी पंतजलि योगपीठ को आत्मर्निभर वा स्वपोषित संस्था बनाने की कल्पना की थी। हमने पुरुषार्थ से संस्था को समर्थ बनाया। हमने अपने गुरुकुलों में अब तक लगभग 500 बालक बालिकाओं को विद्वान बनाया है।मैं सोचता हूं कि हम ऋषियों के अनुगामी बन जायें तो यह हमारे लिए बहुत होगा।आज विदेशों में वेदों को जीवित रखने की परम्परा का आरम्भ हो गया है। गुरुकुल ने हमें जीवन में संघर्ष करना सिखाया है और अच्छे संस्कार दिये। ऋषि दयानन्द के जीवन से हमें शक्ति मिली है।कि वैदिक शिक्षा के प्रसार हेतु प्रधानमंत्री जी के साथ मिलकर वैदिक शिक्षा बोर्ड गठित करने के प्रयास हो रहे हैं। यह काम निकट भविष्य में सफल होगा। आप हमें अपनी शुभकामनायें देते रहें। हम गुरुकुल का ऋण महसूस करते हैं। इसलिए हम गुरुकुलों को बढ़ा रहे हैं।